चिकित्सा शास्त्र में शरीर के उपकार के लिए शरीर का विभागश: ज्ञान होना आवश्यक है। शरीर के तत्वों का उचित प्रकार से ज्ञान कर लेने पर शरीर के उपकारक भावों (हितकारी भावों) का ज्ञान हो जाता है। इसलिए कुशल चिकित्सक शरीर विचय अर्थात विशेष रूप से अबङ्ग-प्रत्यङ्ग, रस-रक्तादि धातुओं के विभाग ज्ञान की प्रशंसा करते हैं। आयुर्वेदीय क्रिया शरीर पाठ्यपुस्तक की रचना वी.ए.एम.एस. के प्रथम वर्ष के छात्र-छात्राओं के लिए हिन्दी संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषा में सरलीकृत एवं अंग्रेजी भाषा में सरलीकृत एवं क्रिया सम्बन्धी प्राचीन एवं अर्वाचीन तथ्यों को समन्वित एवं सुगम्य रूप में रखने का एवं इसमें आयुर्वेद वाङ्गमय में विकीर्ण शरीर क्रिया के पाठ्यक्रम की विषय वस्तु को एकत्रित कर विवेचन का प्रयास किया है।