हमारे देश में में 'जल चिकित्सा पद्धति' प्राचीन काल से प्रचलित है। वैदिक काल से यह पद्धति प्रचलित है। इसीलिए भारतीय-मानस को जल चिकित्सा-पद्धति बोधगम्य भी है क्योंकि हर भारतीय यह जानता है कि हमारा शरीर पाँच तत्त्वों से बना हुआ है और उसमें जल एक प्रमुख तत्व है। हमारे शरीर में 2/3 भाग जल का होता है। इसलिए 'जल चिकित्सा' दूसरी चिकित्सा पद्धतियों की अपेक्षा हमारी शरीर रचना के अधिक अनुकूल है। जब कोई भी विजातीय द्रव्य हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर में स्थित तत्त्व उसके प्रतिरोध में खड़े हो जाते हैं। एक संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है। इसी से संतुलन बिगड़ जाता है और असन्तुलन के फलस्वरूप हम अपने आपको रोगी अनुभव करने लगते हैं, बीमार लगने लगते हैं। जल विजातीय द्रव्यों के निराकरण तथा निष्कासन का सरल एवं सक्षम माध्यम है। इसलिए 'जल चिकित्सा एक वैज्ञानिक पद्धति है। आधुनिक औषधियों से संतप्त बीमार के लिए एक राहत की श्वास है, अत: 'जल चिकित्सा' की अपनी महत्ता है।