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Mansik Rogo Ki Chikitsa

ISBN :     mrkc
Pages :     286
Binding :     Paperback
Language:     Hindi
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PBD
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इस बारे में वंश परम्परा को देखना जरूरी है। रोगी के मां-बाप, दादा-दादी वगैरह में से किसी को यह रोग हुआ था क्या? यह जानना खास आवश्यक है। उन मानसिकता (मेन्टल डेफीसियेन्स) में 75 प्रतिशत तथा वातुलता (भ्रम) में 100 में से 33 प्रतिशत वंश परम्परागत रोग का भोग बनते हैं। बचपन में कभी कोई मानसिक आघात लगे तो कई बार उसका असर जिंदगी भर रह जाता है। 5 से 12 वर्ष की उम्र के दरम्यान स्कूल (पाठशाला) में अन्य बच्चों की संगति, किशोरावस्था मतलब 13 से 19 वर्ष के दरम्यान शारीरिक-मानसिक परिवर्तन होते रहते हैं, उस कारण मानसिक संघर्ष की साधारण परिस्थिति खड़ी हो जाती है।
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