प्रस्तुत पुस्तक में पांच उपदेश हैं, जिनमें क्रमश: आसन, प्राणायाम, मुद्रा, नादानुसंधान तथा यौगिक चिकित्सा विधि जैसे विषय का निरूपण मुख्य रूप से किया गया है। इस प्रकार स्वात्माराम ने हठयोग के मात्र चार अंगों का निर्देश किया है, जो स्वात्माराम की विशेषता है, जबकि विभिन्न हठाचार्यों ने इसके कुछ और भी अंगों का निर्देश किया है। अंगों की संख्या में कितनी भी भिन्नता रही हो, इस बात पर प्राय: मतैक्य है कि हठयोग का अभ्यास राजयोग की प्राप्ति के लिए ही किया जाता है।