इस ग्रंथ की विशेषताओं से पाठक भलीभांति परिचित ही हैं तथापि इस ग्रंथ में प्रतिपादित यौगिक शरीर विज्ञान- जैसे नाड़ी, वायु, मर्मस्थन तथा मर्मस्थानों से संबंधित प्रत्याहार की संकल्पना अपने आप में अनूठी है। इसके अतिरिक्त धारणा-ध्यान जैसे अभ्यासों की प्रक्रियाओं के प्रबोधकारी अनुदेश भी अपने आप में अद्वितीय ही हैं।